धर्मेन्द्र विह्वल ।प्रयागराजमे आस्थाक महाकुम्भ 13 जनवरीसँ शुरू भेल ई महाकुम्भ 26 फरवरी (महाशिवरात्री) आइ समाप्त हएत। तकरे सान्दर्भिता अनुसार प्रकाशोन्मुक कृति ‘जगन्मुक्ति’ लेल लिखल गेल ई “यात्रा संस्मरण” प्रस्तुत अछि। ILM अनुसार भाषाशैली संशोधन कएल गेल अछि। (I Love Mithila)

पृष्टभूमि–महाकुम्भक चर्चा

पौराणिक आ आध्यात्मिक मान्यता छै जे कुम्भस्नान कएलासँ जीवनमे नीक आ सकारात्मक प्रभाव पडै़त छै । अइ प्रभावक परीक्षण तँ के कएने अछि जाइन ने, मुदा धर्मग्रंथसभमे एकर महत्वक मादे वेश चर्चा कएल गेल छै । अइ सम्बन्धमे हमर अध्ययन आधिकारिक नइँ अछि । पढ़बासँ बेसी सुनल अछि आ हमर अध्ययनक सीमाक मादे स्वीकार करबामे हमरा कोनो संकोच नइँ अछि । खैर जे से ! कुम्भक समयमे गङ्गा या कोनो संगम (प्रयाग) नहेबाक बड्ड इच्छा रहए मुदा ई इच्छा पूरा नइँ भ सकल छल । हमरा परिवारमे करिबकरिब सबगोटे (हमर पत्नी सहो) इलाहावाद (प्रयागराज) आ हरिदवारक कुम्भ आ अर्धकुम्भ क स्नानमे सहभागी भ चुकल छथि । मुदा हम समय व्यवस्थापन नइँ क सकबाक कारणँे नइँ जा सकल छलौँ । पौराणिक मान्यताअनुसार इलाहावाद (प्रयागराज), हरिदवार, नासिक आ उज्जैनमे कुम्भक आयाजन होइत छै जे मेलाक रुप धारण करैत छै ।

दिन बितैत जा रहल छलै । सामान्यतया अर्धकुम्भक चर्चा छ वर्ष आ पूर्ण कुम्भक चर्चा बाह्र वर्षपर भेल करैए । विगतमे मोन तँ हमरो छल जे कुम्भमे हमहुँ सहभागी होइतहुँ । मुदा सायद समयक प्रतीक्षा पूरा नइँ भेल रहए । एहिक्रममे महाकुम्भक चर्चा उत्कर्षपर पहुँच रहल छल । बुझा रहल छलै जेना सम्पूर्ण मानव सभ्यता ओतहि अर्थात भारतक इलाहावादस्थित प्रयागराजमे एकत्रित भ रहल होइक । अइ बेरक प्रयागराजक कुम्भ सम्भवतः विश्वक सबसँ पैघ एहन आयोजन छै जत एकहि जगहपर एतेक बेसी लोकके उपस्थिति आ सहभागिता रहलै । २०१ पुस २९ गते अर्थात २०२५ जनवरी १३ पूर्णिमाक दिन शुरु भ शिवरात्रि (२०१ प्mागुन १४ अर्थात फे्रबुअरी २६)क दिन समापन होएबला ई आयोजन ४५ दिन आयोजित भेल आ अइ आयोजनमे करिब ६५ करोड लोकके उपस्थित रहल बात मानल गेल अछि । ई पूर्णकुम्भ जे महाकुम्भक नामसँ प्रचलित अछि, खगोलीय आ ज्योतिष गणना आ संयोगक आधारपर एक सओ ४४ वर्षक बाद मात्र सम्भव भ सकैत छै । एगारहटा पूर्णकुम्भके बाद जे कुम्भ आयोजित होइत छै अर्थात बारहम पूर्णकुम्भ जे एक सओ ४४ वर्षमे अबैत छै ओ महाकुम्भ कहबैत छै । आध्यात्मिक जगतेटा नइँ आजुक भौतिक जगत सेहो अइ आयोजनक महत्वकेँ स्वीकार कएलक अछि । सन २०१७मे युनेस्को महाकुम्भ भेलाकेँ ‘मानवताक अमुर्त सांस्कृतिक सम्पदाु क रुपमे परिभाषित कएने रहए ।

 

किछु आध्यात्मिक मान्यता आ विश्वास तथा किछु सामाजिक प्रतिष्ठाक विषय सेहो कहबाक चाही, महाकुम्भमे सहभागी हएब आवश्यक छलै । पत्नी जीक दवावक सँगहि एहिबेर पुत्र आदित्यक दवाव सेहो छलै । हुनको अइ बेर छुट्टी उपलब्ध छलनि । हुनकर छुट्टीक अनुपलब्धताक कारणे एहिसँ पूर्वक हमरासभक धार्मिक यात्रामे ओ सहभागी नइँ भ सकल छलथि ।

प्रयाग यात्रा– तिथि निश्चित

बहुत दिनसँ यात्रा कार्यक्रम तयार करबामे जुटल छलौँ मुदा उपयुक्त तिथिक प्रतीक्षा छलै । बहुतो गोटे/समूहसँ बात भेल रहए मुदा उपयुक्त तिथिक चयनक समस्याक कारणे यात्राक निश्चित कार्यक्रम नइँ तय भ सकल छल । हम जे संस्था (राष्ट्रिय समाचार समिति)मे कार्यरत छी ओकर ६४म् स्थापना दिवस (फागुन ७ अर्थात फ्रेबुअरी १९मे) छलै । हम ओ दिवसक आयाजनक बाद मात्र यात्रा क सकबाक अवस्थामे छलौँ । एकर अर्थ छलै जे हम फागुन आठ अर्थात फ्रेबुअरी २०सँ पहिने यात्रा नइँ कऽ सकैत छलौँ । आ हमर ई प्रस्तावक सँग तालमेल मिलेबामे आनऽक लेल सहज नइँ भऽ पाबिरहल छलै आ हम मात्र तीनुगोटे (हम, पत्नी मुन्नी आ पुत्र आदित्य यात्रा करबासँ असकता रहल छलौँ । एक समय तँ एहन बुझाए लागल जे आब महाकुम्भक ई दुर्लभ आयोजनक प्रत्यक्ष साक्षी शायद नइँ बनि पाएल हएत । मुदा हम अइ पुस्तकमे पहिने चर्चा कऽ चुकल छी, सिद्धस्थलमे ताधरि नइँ गेल जा सकैत छै जाधरि ओ स्थानसँ आह्वान नइँ होइक । तहिनाके के सँगे जाएब शायद इहो पूर्वेनिश्चित रहैत छै । एहिबेर कपिलवस्तुक माहुरीहोम (मधेश मानव अधिकार गृह)क संस्थापक अध्यक्ष मित्र रविन्द्रनाथ ठाकुर (रविजी)क सँग महाकुम्भक यात्रा शायद पूर्वनिश्चित छलै ।

एक दिनक बात छै (शायद माघ महिनाक १७/१८ म दिन) हम रविजीकेँ फोन केलियनि आ कहलियनि–कि छै रविजी हालखवरि ? कुम्भ तँ अहाँसभके ठामसँ तँ नजदिक छै । अहाँ तँ भऽ आएल हएब । हम नइँ जेबै कि ?ओ कहलनि– हमहुँ नइँ गेल छी । हमरो जेबाक अछि । अहुँ जाएब कि ?हम कहलियनि– हमहुँ कहाँ गेल छी । जेबाक तँ हमरो अछि ।हुनक कहब छलनि– तखन सँगे चलू । हम एतऽ व्यवस्थापन करै छी । कहिया जा सकै छी ? हम तँ फागुन पहिल सप्ताहसँ पहिने नइँ जा सकै छी ।ई कि भऽ रहल छै ? हम जे चाहैत छलौँ सएह भऽ रहल छै । हम तपाकसँ कहलियनि– फागुन सातसँ पहिने तँ हमहुँ नइँ जा सकै छी ।ओ कहलनि– चलु अहाँक हमर बात मिलिगेल । तिथि अहीँ कहू ।हम कहलियनि– फागुन आठ । हमसब तीनगोटे रहब हम, पत्नी मुन्नी आ आदित्य ।ओ आब यात्राहेतु गाडी ताकब आ अन्य व्यवस्थापन करबाक बात कहैत हमरा यात्राक निश्चितताहेतु आश्वस्त केलनि । एहिप्रकारे हमरासभकेँ आब फागुन आठक साँझमे बससँ यात्रा प्रारम्भ कऽ नओ गते भोरमे तौलिहवा पहुँचब आ ओतऽ माहुरी होममे कनेकाल विश्राम कऽ इलाहावाद हेतु प्रस्थान करबाक योजना बनल । हमर यात्राक टिकटलगायतक यात्राक व्यवस्थापनहेतु भाई वसन्त वन्जाडे आ मुस्तफाक सहयोगक हम प्रशंसा करऽ चाहब ।

विद्यमान रहतै कियो नइँ कहि सकैत अछि ।

नारायणघाटसँ पहिने रामपुरमे भोजन करबालेल बस रुकल । रातुक करिब साढे़ एगारह बाजिरहल छल । हमरालोकनि काठमाण्डूसँ चलबाकाल जलपान कने दाबिए कऽ कएने छलौ तएँ भोजनऽक खासे आवश्यकता नइँ छलै । भोजन नइँ कऽ तीनूगोटे चाउचाउ ग्रहण करबाक निर्णय हमरालोकनि कएलाैँ आ ताहिमोताविक होटलमे जा अर्डर देलियै । ओ कनेकालक बाद आनिदेलक । हमसभ खेलौँ । चाउचाउ नेपालमे लोकप्रीय अछि ताहिदुआरे नइँ बल्कि हमरासभक माननाइ अछि जे रातिमे हल्का भोजनक रुपमे चाउचाउ ग्रहण कएल जा सकैत अछि । मुदा खाद्यशास्त्रीसभ एहिमे अत्यधिक मैदा होबाक कारणे एकरा भोजनक रुपमे उपयुक्त नइँ मानैत छथि । ओतऽसँ बस आगाँ बढल आ कनेकाल बुटवलमे विलमैत चारि नम्बर जीतपुर होइत करिब सात वजे भोरमे तौलिहवा पहुँचल ।कएलेण्डरक तारिख आ गते बदलिचुकल छल– २०८१ फागुन ९ अर्थात २०२५ फ्रेबुअरी २१ । हम बाटेसँ वसन्त आ रवि जीक सम्पर्कमे छलौँ । वसपार्कमे उतरि हमरालोकनि एक अटो लऽ माहुरी होम पहुँचलौ । ओतऽ निर्मला हमरासभकेँ विश्राम करबालेल एक कोठली तयार कऽ रखने छलीह । कनेकालक बाद वसन्त, रवि जी, खग चापागाइ, ओमप्रकाश आ माहुरी होमक वर्तमान अध्यक्ष आदरणीय दद्दु रामदयाल ठाकुर जीसभसँ भेट भेल । बाचचित भेल । चायपान चललै । कनेकालक बाद रेम टण्डन जीक होटल, जतऽ हम पहिनहुँ कएकबेर भोजन कएने छी,मे गेलौँ आ भोजन कएलाैँ । हमरा एतहुका भोजन नीके लगैए । भोजन स्वस्थकर, साफ आ ताजा रहैत छै से हमर विश्वास अछि । मुन्नी आ आदित्यकेँ सेहो भोजन नीक लगलनि ।

 

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